भूमि राजस्व व्यवस्था की तुलना: स्थायी बंदोबस्त बनाम रैयतवारी व्यवस्था (औपनिवेशिक भारत)
कैसे ब्रिटिश राजस्व नीतियों ने बंगाल और मद्रास प्रेसीडेंसी में कृषक संबंधों और संपत्ति अधिकारों को बदल दिया
स्थायी बंदोबस्त और रैयतवारी व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन
ब्रिटिश शासन ने भारत की कृषि व्यवस्था को गहराई से बदल दिया। राजस्व वसूली की दो प्रमुख व्यवस्थाएँ—स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement, 1793) और रैयतवारी व्यवस्था (Ryotwari Settlement, 1820)—ने भूमि स्वामित्व, किसानों की स्थिति और सामाजिक ढांचे पर स्थायी प्रभाव डाला।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी और राजस्व का मुख्य स्रोत भी। 1765 में बंगाल का दीवानी अधिकार मिलने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगलकालीन व्यवस्था को अपनाया लेकिन अपने आर्थिक हितों के अनुसार संशोधित किया। परिणामस्वरूप पूंजी संचय हेतु नई व्यवस्थाएँ लागू की गईं—स्थायी बंदोबस्त (लॉर्ड कॉर्नवालिस, 1793) और रैयतवारी व्यवस्था (सर थॉमस मुनरो, 1820)।
स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement): जमींदारी व्यवस्था
मुख्य विशेषताएँ
- स्थायी राजस्व: भूमि राजस्व स्थायी रूप से निश्चित, उत्पादन बढ़ने पर भी कर नहीं बदला।
- जमींदार की भूमिका: सरकार और कृषकों के बीच मध्यस्थ।
- भूमि बाजार का उदय: कर न देने पर भूमि की नीलामी, जिससे भूमि वस्तु के रूप में खरीदी-बेची जाने लगी।
- किसानों के अधिकार: जमींदार को पत्ता (पट्टा) देना आवश्यक, पर व्यवहार में लागू नहीं।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
- जमींदार वर्ग का उदय: स्थानीय सरदारों की जगह बिचौलियों और बनियों ने ली।
- किसानों पर बोझ: नकदी फसलों (नील, कपास) की जबरन खेती और अकाल की समस्या।
- पूंजी संचय: जमींदारों ने पूंजी अर्जित की, पर किसानों की स्थिति बिगड़ी।
सीमाएँ
- किसानों के अधिकारों की उपेक्षा।
- अकाल की स्थिति में कोई रियायत नहीं।
- जमींदारों का भूमि से अलगाव (Absentee Landlordism)।
रैयतवारी व्यवस्था (Ryotwari Settlement): सीधा किसान–राज्य संबंध
मुख्य विशेषताएँ
- प्रत्यक्ष करारोपण: प्रत्येक किसान (रैयत) से सीधे राजस्व वसूली।
- लचीले स्वामित्व अधिकार: किसान अपनी इच्छा से भूमि छोड़ सकता या बढ़ा सकता था।
- राहत प्रावधान: फसल खराब होने पर कर में रियायत।
- कोई बिचौलिया नहीं: राजस्व अधिकारी सीधे किसानों से कर वसूलते थे।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
- किसानों को स्वामित्व अधिकार मिले, पर कर अत्यधिक।
- सिंचाई व सर्वेक्षण में राज्य की पहल।
- प्रशासनिक स्पष्टता: विस्तृत सर्वेक्षण और अभिलेख।
सीमाएँ
- उच्च कर मांग (कभी-कभी 50% उपज तक)।
- छोटे-छोटे जोत (औसतन 5 एकड़) → पूंजी निवेश कठिन।
- स्थायी स्वामित्व का अभाव → दीर्घकालीन निवेश हतोत्साहित।
तुलनात्मक अध्ययन
पहलू | स्थायी बंदोबस्त | रैयतवारी व्यवस्था |
---|---|---|
क्षेत्र | बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उप्र, मद्रास (19%) | मद्रास, बंबई, असम, सिंध (51%) |
करदाता | जमींदार (मध्यस्थ) | व्यक्तिगत किसान (रैयत) |
कर निर्धारण | स्थायी, कभी न बदले | वार्षिक/समय-समय पर पुनर्मूल्यांकन |
भूमि स्वामित्व | जमींदार को, किसान कमजोर | किसान को स्वामित्व, लचीलापन |
कर भार | उच्च, कठोर, कोई छूट नहीं | उच्च परंतु खराब फसल में छूट |
निवेश | जमींदार पर निर्भर, अक्सर उपेक्षित | राज्य द्वारा सिंचाई आदि में निवेश |
सामाजिक प्रभाव | अनुपस्थित जमींदारी, वर्ग परिवर्तन | किसानों की भूमिका मजबूत |
प्रशासन | कमजोर रिकॉर्ड, सर्वेक्षण नहीं | विस्तृत सर्वेक्षण व रिकॉर्ड |
प्रमुख अंतर
- मध्यस्थ बनाम प्रत्यक्ष कर: स्थायी बंदोबस्त में जमींदार, जबकि रैयतवारी में किसान सीधे सरकार को कर देते थे।
- कर प्रणाली: स्थायी बंदोबस्त कठोर, रैयतवारी अपेक्षाकृत लचीली।
- सामाजिक ढाँचा: स्थायी बंदोबस्त → नए जमींदार वर्ग का उदय। रैयतवारी → किसानों की स्वायत्तता।
दीर्घकालिक परिणाम
- स्थायी बंदोबस्त: भूमि बाजार विकसित, पर असमानता और अकाल की समस्या।
- रैयतवारी व्यवस्था: किसानों को अधिकार मिले, पर ऊँचे कर और छोटे जोत से कृषि विकास बाधित।
निष्कर्ष
दोनों व्यवस्थाएँ ब्रिटिश राज की राजस्व वसूली नीति का हिस्सा थीं।
- स्थायी बंदोबस्त ने राजस्व स्थिरता और जमींदार वर्ग को जन्म दिया, पर किसानों के शोषण और अकाल को बढ़ाया।
- रैयतवारी व्यवस्था ने किसानों को सीधे अधिकार दिए, पर अत्यधिक कर और छोटे जोतों के कारण विकास सीमित रहा।
👉 दोनों ने परंपरागत कृषि ढाँचे को तोड़ा और भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था व समाज पर स्थायी असर डाला।
Exam Pointers (प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु)
- स्थायी बंदोबस्त: 1793, लॉर्ड कॉर्नवालिस, बंगाल।
- रैयतवारी व्यवस्था: 1820, सर थॉमस मुनरो, मद्रास।
- स्थायी बंदोबस्त → जमींदार मध्यस्थ, स्थायी कर।
- रैयतवारी → किसान सीधे करदाता, वार्षिक पुनर्मूल्यांकन।
- स्थायी बंदोबस्त का क्षेत्रफल: ~19% ब्रिटिश भारत।
- रैयतवारी का क्षेत्रफल: ~51% ब्रिटिश भारत।