बिहार में सूखा प्रतिरोधी चावल की किस्मों पर CRISPR-Cas12 का प्रभाव
कैसे उन्नत जीनोम संपादन बिहार के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में चावल की खेती में क्रांति ला रहा है
CRISPR-Cas12: बिहार में धान की खेती में क्रांति
मौजूदा चुनौतियाँ
- बिहार की 68% कृषि भूमि जल संकट से जूझ रही है
- पारंपरिक धान की किस्मों की पैदावार सूखे के दौरान 40-60% तक घट जाती है
- जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की घटनाएं बढ़ रही हैं
CRISPR-Cas12 कैसे काम करता है
प्रक्रिया: 1. सूखा-प्रतिरोधी जीन (जैसे OsERF71) की पहचान
2. सटीक संपादन के लिए गाइड RNA डिज़ाइन करना
3. Cas12 प्रोटीन द्वारा लक्षित जीन संशोधन
4. संपादित किस्मों का फील्ड परीक्षण
फायदे:
- Cas9 की तुलना में अधिक सटीकता
- कई जीन एक साथ संपादित किए जा सकते हैं
- ऑफ-टारगेट प्रभाव बहुत कम
बिहार-विशेष पहलें
चल रहे प्रोजेक्ट्स:
राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय की पहल
- 5 सूखा-प्रतिक्रिया जीन का संपादन
- प्रारंभिक परीक्षणों में 42% पैदावार में सुधार
आईसीएआर-सीआरआरआई सहयोग
- 110 दिनों में तैयार होने वाली अल्प-अवधि धान की किस्में विकसित की जा रही हैं (पारंपरिक 150 दिनों के मुकाबले)
- 30% कम जल की आवश्यकता
फील्ड ट्रायल परिणाम (2024)
किस्म | जल की बचत | पैदावार वृद्धि | अपनाने की दर |
---|---|---|---|
CRISPR-धान 1 | 35% | 28% | 12% |
सुखद-2 | 40% | 32% | 8% |
पारंपरिक विधियों की तुलना में लाभ
तकनीक | विकास अवधि | सटीकता | लागत (₹/एकड़) |
---|---|---|---|
पारंपरिक | 8–10 वर्ष | कम | 4,200 |
एमएएस ब्रीडिंग | 5–7 वर्ष | मध्यम | 6,800 |
CRISPR-Cas12 | 2–3 वर्ष | उच्च | 3,500 |
भविष्य की योजनाएं
2025 लक्ष्य:
- 3 नई व्यावसायिक किस्मों का विमोचन
- बिहार के धान क्षेत्र का 15% कवर करना
- भूजल उपयोग में 25% की कमी लाना
आवश्यक नीतिगत सहयोग:
- स्पष्ट नियामक ढांचा
- किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम
- CRISPR बीजों के लिए सब्सिडी

वैज्ञानिक आधार
संपादित प्रमुख जीन
- OsPYL/RCAR7 (एब्सिसिक एसिड रिसेप्टर)
- OsSAPK1 (स्ट्रेस-एक्टिवेटेड प्रोटीन किनेस)
- OsNAC14 (ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर)
CRISPR-Cas9 की तुलना में लाभ
- सिंगल-स्ट्रैंड डीएनए कटिंग के कारण कम त्रुटियाँ
- पौधों में बेहतर प्रदर्शन
- एक साथ कई गाइड RNA संसाधित करने की क्षमता