बिहार का 65% आरक्षण कानून: अधिनियमन से लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज किये जाने तक
बिहार के विवादास्पद आरक्षण संशोधन का पूरा कानूनी सफर, सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले के साथ
मुकदमे की पूरी समय-रेखा
विधायी प्रक्रिया
9 नवंबर 2023: बिहार विधानसभा में संशोधन सर्वसम्मति से पारित
आरक्षण वृद्धि का विभाजन
वर्ग | परिवर्तन |
---|---|
अति पिछड़ा वर्ग (EBC) | 25% → 30% |
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) | 12% → 15% |
अनुसूचित जाति (SC) | 16% → 20% |
अनुसूचित जनजाति (ST) | 1% → 2% |
कुल आरक्षण: 75% (10% EWS सहित)
न्यायिक चुनौतियाँ
20 जून 2024:
- पटना हाईकोर्ट ने संशोधनों को रद्द किया
- पाया गया कि पिछड़े वर्ग पहले से ही 68.52% सरकारी पदों पर काबिज हैं
29 जुलाई 2024:
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया
6 सितंबर 2024:
- सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय: संशोधन असंवैधानिक घोषित

सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ
1. 50% सीमा पर
कानूनी सिद्धांत का प्रवाह:
इंद्रा साहनी मामले में 50% की सीमा तय की गई थी
यह एक संवैधानिक आवश्यकता है
अपवाद केवल विशेष परिस्थितियों में ही संभव
बिहार सरकार ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति साबित नहीं कर सकी
2. जातिगत सर्वेक्षण डेटा पर
कमियाँ पाई गईं:
केवल जनसंख्या डेटा, सामाजिक पिछड़ेपन का विश्लेषण नहीं
समुदाय की प्रगति का कोई मूल्यांकन नहीं
आर्थिक पहलुओं पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया
न्यायालय की टिप्पणी:
“सिर्फ जनसंख्या के अनुपात के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता”
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (6 सितंबर 2024)
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 5-0 से सर्वसम्मति में यह निर्णय दिया कि बिहार का 65% आरक्षण कानून असंवैधानिक है। इसने पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा:
“50% आरक्षण सीमा कोई सामान्य नियम नहीं बल्कि संविधान की संरचना की रक्षा करने वाली अनिवार्यता है, जो अनुच्छेद 14, 15 और 16 में निहित समानता के सिद्धांत को बनाए रखती है।”
प्रमुख निर्णय बिंदु
- पीठ की संरचना: मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति नरसिम्हा, कोहली, मिश्रा, गुप्ता
- मुख्य निष्कर्ष: संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन
- प्रमुख संदर्भ: इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992)
- आदेश: आरक्षण की सीमा 50% पर तुरंत बहाल की जाए